इक तू ही नहीं और भी तनहा हैं ज़माने में
बैठे ठाले की तरंग -------------------------
इक तू ही नहीं और भी तनहा हैं ज़माने में
हम ही नहीं और भी ग़मज़दा हैं ज़माने में
दास्ताँ ऐ गम तू सबको तू सुनाया न कर
हर शख्स होता नहीं हैं हमदर्द ज़माने में
----------------------------- मुकेश इलाहाबादी
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