एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Monday, 30 January 2012
सुर्ख गालों, आबनूशी गेसू ऑ,
बैठे ठाले की तरंग -------
सुर्ख गालों, आबनूशी गेसू ऑ,
बसन्ती दामन से लिपट आया,
यूँ मै बहारों से गले मिल आया
------- मुकेश इलाहाबादी
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment