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Monday, 27 February 2012

मिजाज़पुर्शी के बाद, चाय पिला देता हूँ

बैठे ठाले की तरंग ---------------

मिजाज़पुर्शी के बाद, चाय पिला देता हूँ
बरसों का याराना है,यारी निभा देता हूँ

उलाहने देता फिरूं,हर वक़्त,आदत नहीं
ग़र बात चली तो हर बात गिना देता हूँ

कोई जादूगर या कोई फरिस्ता नहीं पै,
अक्सर पत्थर पे भी गुल खिला देता हूँ

मुकेश इलाहाबादी -----------------


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