दोस्त,
जानती हो बोगन बेलिया के फूलों की पत्तियां बेहद पतली व मुलायम तो होती ही हैं पर उसमे कोई सुगंध नही होती। जैसे मुझमें। शायद इसीलिये मैने अपने घर के चारों तरफ बोगन बेलिया की कई कई रंगो की कतारें सजा रक्खी हैं। जो सुर्ख, सुफेद और पर्पल रंगों में एक जादुई तिलिस्म का अहसास देती हैं। जब कभी इनकी मासूम, मुलायम पत्तियां हवा के झोंके से या कि आफताब की तपिश से झर झर कर जमीन पे कालीन सा बिछ जाती हैं, तब उसी मखमली कालीन पर हौले से बैठ कर या कि कभी लेट कर, सलोनी के ख़यालों, ख्वाबों में डूब जाता हूं। तब बोगन बेलिया की एक एक पत्ती उसके चेहरे के एक एक रग व रेषे की मुलायम खबर देती है। तब मै ख्वाबों के न जाने किस राजमहल में पहुचं जाता हूं। जहां सिर्फ सलोनी होती है और सिर्फ सलोनी होती है। और होता हूं मै। ऐसा ही एक अजीब ख्वाब उस दिन दिखा था। अजीब इस वजह से कि वह एक साथ भयावह व खुशनुमा था।
दोस्त, तुम जानती हो ? उस ख्वाब में मैने देखा ?
कि मुहब्बत की रेशमी ड़ोरी और रातरानी की मदहोश खुषबू से लबरेज़ झूले मे सलोनी झूल रही है। किसी परी की तरह और मै उसे झूलते हुये देख रहा हूं। जब झूला उपर की ओर जाता है, तो उसके नितम्बचुम्बी आबनूषी केश जमीन तक लहरा जाते। जैसे कोई काली बदरिया आसमान से उतर कर जमीं पे मचल रही हो।
लेकिन, ये बादल मचल ही रहे थे कुछ और परवान चढ ही रहे थे कि.....
अचानक कहीं से एक बगूला उठा जो एक तूफान में तब्दील होता गया। और वह तूफान से ड़र कर वह मेरी तरफ दौड़ पडी़।
और ... मै उसे अपने आगोश में ले पाता कि वह तूफन उसे उठा ले गया।
और मै उसे औ वह मुझे पुकारती ही रह गयीं।
और तभी मै अपने ख्वाब महल से जो रेत के ढे़र में तब्दील हो गया था, बाहर आ गिरा या।
और उस वक्त मेरी मुठठी में महज बोगन बेलिया की कुछ मसली व मुरझाई पत्तियां ही रह गयी थी।
और ... एक वह दिन कि आज का दिन मैने खुली ऑखों से कोई ख्वाब नही देखा।
अगर देखना भी होता है तो, बंद ऑखों से देखता हूं।
जिनके बारे में कम से कम यह तो मालूम रहता ही है कि यह ख्वाब हैं जिन्हे सिर्फ नींद के बाद टूटना ही होता है।
खैर दोस्त मै भी कहां की बातें करने लगा।
कल सारा दिन विजली व पानी के इंतजामात में बीता। शाम को बिजली तो आयी पर पानी अभी भी नही आया।
रात आपसे बात करके आराम से सोया।
अभी अभी आके नेट पे बैठा हूं।
दोपहर में आपसे बात करुंगा।
मुकेश इलाहाबादी
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