बैठे ठाले की तरंग --------------------------------------
जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं
दिल से दिल मिल न पाए ऐसी कोई मजबूरियां नहीं
स्याह रातों में हम चलते रहे उम्र भर,
सफ़र में उजाला भर दे ऐसी कोई बिजलियाँ नहीं
है बेहिस चांदनी फ़ैली हुई हर सिम्त,
ले सकूं लुत्फ़ चांदनी का ऐसी कोई खिड़कियाँ नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
जिस्म से जिस्म की दूरियां कोई दूरियां नहीं
दिल से दिल मिल न पाए ऐसी कोई मजबूरियां नहीं
स्याह रातों में हम चलते रहे उम्र भर,
सफ़र में उजाला भर दे ऐसी कोई बिजलियाँ नहीं
है बेहिस चांदनी फ़ैली हुई हर सिम्त,
ले सकूं लुत्फ़ चांदनी का ऐसी कोई खिड़कियाँ नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------------
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