एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Monday, 25 June 2012
धुप निखर आयेगी
बैठे ठाले की तरंग ------
धुप निखर आयेगी
रात गुज़र जायेगी
शराब ज़हर बन के
सीने में उतर जायेगी
खुशबू गुलशन छोड़
फिर किधर जायेगी
सामने हो हुश्न बेपनाह
नज़र सिर्फ उधर जायेगी
महफ़िल में आयेगी तो
चांदनी बिखर जायेगी
मुकेश इलाहाबादी -------
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