बैठे ठाले की तरंग ----------
बहेलिये तेरे जाल में न आयेंगे परिंदे
नई शदी के हैं बेख़ौफ़ बेबाक से परिंदे
ऊंची से ऊंची उड़ान को तैयार हैं सभी
ये अब तेरी हर चाल हैं समझते परिंदे
बहेलिये तेरे जाल में न आयेंगे परिंदे
नई शदी के हैं बेख़ौफ़ बेबाक से परिंदे
ऊंची से ऊंची उड़ान को तैयार हैं सभी
ये अब तेरी हर चाल हैं समझते परिंदे
रह रह के हवा का रुख परखते हैं, औ
हरबार अपने जंवा पर तोलते हैं परिंदे
ज़मी से अपना जाल समेत बहेलिये
ये ऊंचे से ऊंचे मचानों पे बैठते हैं परिंदे
अब कुछ न कुछ तबदीली हो के रहेगी
हर रोज़ नई नई उड़ान भरते हैं ये परिंदे
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
ज़मी से अपना जाल समेत बहेलिये
ये ऊंचे से ऊंचे मचानों पे बैठते हैं परिंदे
अब कुछ न कुछ तबदीली हो के रहेगी
हर रोज़ नई नई उड़ान भरते हैं ये परिंदे
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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