एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Tuesday, 17 July 2012
चिरकाल तक तुम्हे याद करते हुए
चिरकाल तक तुम्हे याद करते हुए
बैठा रह सकता हूँ
चट्टान बन जाने की हद तक
इंतज़ार के अनंत युगों तक
धूप, छांह, अंधड़, पानी सहते हुए
बिखर सकता हूँ
बह जाने को नदी नाले से होते हुए
नीले समुद्र मे
रेत बन कर
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment