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Monday, 23 July 2012

औरत किला और सुरंग



औरत --
एक किला है
जिसमे तमाम
सुरंगे ही सुरंगे हैं
अंधेरे और सीलन से
ड़बड़बाई
एक सुरंग मे घुसो
तो दूसरी
उससे ज्यादा भयावह
अंधेरी व उदासियों से भरी।
एक सुरंग के मुहाने मे खडा़
सुन रहा था
सीली दीवारो की
सिसकियों कों
दीवार से कान लगाये
हथेलियां सहलाते हुए                               
उस ताप और ठंड़क को
महसूस करने लगा
एक साथ
जो न जाने कब से कायम थे
शायद तब से जब से
जब से इस किलें में अंधेरा है
या तब से,
जब से ईव ने
आदम का हर हाल मे
साथ देने की कसम खायी
या फिर जब
प्रक्रित से औरत का जन्म हुआ
तब से या कि जब से
ईव ने आदम के प्रेम में पड़ कर
सब कुछ निछावर किया था
फिर सब कुछ सहना शुरू कर दिया था
सारे दुख तकलीफ
धरती की तरह
या किले की सीली दीवारों की तरह
मै उस अधेरे मे
सिसकियां ओर किलकारियां
भी सुन रहा था एक साथ
उस भयावह अंधेरे मे
अंधेरा अंदर ही अंदर
सिहरता जा रहा था
कान चिपके थे
किले की
पुरानी जर्जर दीवारों से
जों
फुसफुसाहटों की तरह
कुछ कहने की कोशिश
मे थी, किन्तु कान थे कि सुन नही पा रहे थे
मन बेतरह घबरा उठा और  मै
बाहर आ गया
उदास किले की सीली सुरंगों के भीतर से
जो उस औरत के अंदर मौजूद थीं
न जाने कब से
शायद आदम व हव्वा के जमाने से

मुकेश इलाहाबादी

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