अब लुत्फ़ न रहा जिंदगानी मे
मज़ा आता नहीं किस्से कहानी मे
करके हवाले खुद को समंदर के
मज़ा लेता हूँ लहरों की रवानी मे
जब से छूटा है परिंदा कफस से
वह तब से है खुश है परफिशानी मे
ग़ुरबत मे कुछ दिन बिता के देखो
जान लो क्या मज़ा है परेशानी मे
मुकेश इलाहाबादी ------------
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