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Wednesday, 12 September 2012

अपनी कब्र पे,

अपनी कब्र पे,
चरागाँ  कर आया हूँ
अंधेरा था बहुत,
थोडा उजाला कर आया हूँ

नींद नहीं आती,
उसको शबो-रात, 
सुबह तक आ जायेगी
वायदा कर आया हूँ

तमाशा हो रहा था,
मैंने भी किया,
अपनी उरियानियों को
नुमाया कर आया हूँ

फैला था मलगजी,
शाम का साया
हंसा कर उसे, मौसम 
सुहाना कर आया हूँ  

मुकेश इलाहाबादी -------

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