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Monday, 10 September 2012

वो तो पगली है ....

वो तो पगली है ....
पगली! सर पटकती है
पत्थर पे,
कहती है,
‘मै डूब जाउंगी जहां दरिया बहता है’
पगली की आखों से,
जो दिन रात बहता है
उसे अश्क कहता हूं
तो मुहब्बत बेनाम होती है
उसकी ऑखों मे देखूं तो
खौफ लगता है,
गौर से देखूं तो,
समंदर लगता है
कभी लहरें मचलती हैं
कभी लहरें थिरकती हैं
कभी लहरें ठाठें मार कर
उसी पत्थर पे,
फिर फिर सर पटकती हैं
मै बिखरुंगी
मै टूटूंगी
हजारों बार तेरे सीने पे
मै सर पटकूंगी
लेकिन तेरे सीने को एक दिन
रेत मे बदलूंगी
ये पगली
रोती है
सिसकती है
फिर फिर पत्थर पे सर पटकती है
जहां दरिया नही बहता
वहां सर पटकती है
कहती है
जहां दरिया बहता है.
"वहां मै डूब जाउंगी"
पगली है - पत्थर पे सर पटकती है

मुकेश इलाहाबादी --------------------

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