एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 20 September 2012
सजाओ तुम भी महफ़िल अपने हुस्न और जलवों की
सजाओ तुम भी महफ़िल अपने हुस्न और जलवों की
हम भी बैठे है फुर्सत में जाम ऐ इश्क फैलाए हुए, अब
देखना है रिंद जीतता है या - साकी
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------
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