एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Wednesday, 31 October 2012
हमने तो चाहा था, बहुत कुछ समझना समझाना
हमने तो चाहा था, बहुत कुछ समझना समझाना
तुम ही तो जिद पे अड़े थे हमें है कुछ ना समझना
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------
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