एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 18 October 2012
तेरी कैदे ज़ुल्फ़ में ही,
तेरी कैदे ज़ुल्फ़ में ही,
जवानी गुज़र गयी,
रिहाई की उम्मीद में
जिंदगानी गुज़र गयी,
सुबह जाग के जो देखा
रात तूफानी गुज़र गयी
मुकेश इलाहाबादी ----
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