एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 19 October 2012
कभी तन्हा रहे,
कभी तन्हा रहे,
कभी महफ़िल में बैठे
अजब हाल है मेरा
दिल कंही लगता नहीं
कभी यंहा बैठे
कभी वंहा बैठे
मुकेश इलाहाबादी -----
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