एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Saturday, 3 November 2012
बुलबुल मेरी मुंडेर पे चहकती नहीं,
बुलबुल मेरी मुंडेर पे चहकती नहीं,
चांदनी भी मेरी अंगनाई आती नहीं
कंही मेरा वजूद ही छोटा हो जाए की
शाम की परछाईयाँ हो रही हैं लम्बी,
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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