तू लाज़वाब है तेरा जवाब कंहा से ढूंढूं ?
अब तुझसे बेहतर शबाब कंहा से ढूँढू ?
चढ़ जाए नशा तो उतरे न ताजिंदगी,
तेरी जैसी बेमिशाल शराब कंहा से ढूँढू ?
सहरा ऐ ईश्क में गुम हुआ समंदर मेरा
अब तिश्नगी के लिए आब कंहा से ढूँढू ?
मंज़र देखने को आँखें नहीं है रौशन,,
तेरे लिए नया आफताब कंहा से ढूँढू ?
रात है, तन्हाई है , और दश्ते तीरगी है
अब रोशनी के लिए चाँद कंहा से ढूंढू ?
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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