लाल हरी और नारंगी चुनरी
तुझपे क्या खूब जंची चुनरी
कंही कुम्हला न जाए ये हंसी,
ओढा दूं तुझे प्यार की चुनरी
रह रह के झांके चन्दा बदरी से
वैसी लगती तू और तेरी चुनरी
काली बदरी फिर - फिर सोचे
तूने क्यूँ न ओढी उसकी चुनरी
वैसे तो तू हर रूप मे अच्छी
पीया को भाये जब ओढी चुनरी
मुकेश इलाहाबादी ---------------
No comments:
Post a Comment