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Tuesday, 5 March 2013

लाल हरी और नारंगी चुनरी


 लाल हरी और नारंगी चुनरी
तुझपे क्या खूब जंची चुनरी

कंही कुम्हला न जाए ये हंसी,
ओढा दूं तुझे प्यार की चुनरी

रह रह के झांके चन्दा बदरी से
वैसी लगती तू और तेरी चुनरी

काली बदरी फिर - फिर सोचे
तूने क्यूँ न ओढी उसकी चुनरी

वैसे  तो तू हर  रूप मे  अच्छी
पीया को भाये जब ओढी चुनरी

मुकेश इलाहाबादी ---------------



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