एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 7 April 2013
मुस्कुराए हैं वेआज कुछ इस तरह
मुस्कुराए हैं वेआज कुछ इस तरह
ज़िन्दगी लाई हो हयात जिस तरह
आइना तोड़ कर बताना पड़ा मुझे,
टुकडा टुकड़ा बिखरा हूँ किस तरह
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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