एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Wednesday, 10 April 2013
बोलती हैं खामोशियाँ सुनते हैं हम,
बोलती हैं खामोशियाँ सुनते हैं हम,
बेवज़ह बैठे बैठे ख्वाब बुनते हैं हम
सारे फूल और कलियाँ लोग ले गए
बिखरी सूखी पत्तियाँ चुनते हैं हम
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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