एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Wednesday, 1 May 2013
गर इज़हार ऐ मुहब्बत को ज़ख्म देना कहती हो
गर इज़हार ऐ मुहब्बत को ज़ख्म देना कहती हो
तो ज़ख्म दे के खुद को वह गुनाहगार समझता है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
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