एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Monday, 3 June 2013
एक हम थे उम्र भर लिखते रहे उनकी ख़ूबसूरती पे ग़ज़ल
एक हम थे उम्र भर लिखते रहे उनकी ख़ूबसूरती पे ग़ज़ल
एक वो थे ---- पढ़ते रहे किसी और के आखों की तहरीर।।।
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------------
1 comment:
Anonymous
14 June 2013 at 09:26
Waah ..
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Waah ..
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