जुबां पे अपने वह शक्कर रख के आया
कातिल बगल मे अपने खंज़र रख के आया
आखों में अपने वह शोले छुपाये था,
दिल मे अपने गहरा समंदर रख के आया
सड़क पे रह के दूसरों का घर बनाया
खुश है बहुत अपना छप्पर रख के आया
दौलत औ शोहरत उन्ही की होती है
जो हाथ की लकीरों मे मुक़द्दर रख के आया
फूलों सा नाज़ुक दिल रखता था मुकेश
अरमानो पे आज अपने पत्थर रख के आया
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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