Pages

Saturday, 11 January 2014

इन्सानियत के लिबास मे रह्ता था

इन्सानियत के लिबास मे रह्ता था
अमीरो गरीब सबसे मिला करता था

चुभे थे बेसुमार खन्ज़र दिल मे मगर
लबों पे मुस्कुराहट सजाये रखता था

मुहब्बत से बडा कोई भी मज़हब नही
यही बात वह बार बार कहा  करता था

बद्शाहियत तो उसकी फितरत मे थी
भले ही  दौलत से फकीर दिखता था

अज़ब तबियत का शख़्श था मुकेश
मोम के पैरों से आग पे चल्ता था

मुकेश इलाहाबादी -------------------

No comments:

Post a Comment