न कोई शोर न कोई शराबा हुआ
रात क़त्ल मेरे एहसासों का हुआ
हम तो मिले भूल के गिले शिकवे
फिर क्यूँ पीठ पे वार दुबारा हुआ?
लगने ही वाली थी साहिल पे कश्ती
ऐसा तूफाँ बरसा दूर किनारा हुआ
भले ही धड़कता दिखे मेरे सीने मे
अब हरहाल में दिल तुम्हारा हुआ
अब सूरज भी सियासतदां हो गया
कि दूर गरीबों के दर से उजाला हुआ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
रात क़त्ल मेरे एहसासों का हुआ
हम तो मिले भूल के गिले शिकवे
फिर क्यूँ पीठ पे वार दुबारा हुआ?
लगने ही वाली थी साहिल पे कश्ती
ऐसा तूफाँ बरसा दूर किनारा हुआ
भले ही धड़कता दिखे मेरे सीने मे
अब हरहाल में दिल तुम्हारा हुआ
अब सूरज भी सियासतदां हो गया
कि दूर गरीबों के दर से उजाला हुआ
मुकेश इलाहाबादी ------------------
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