चराग़ जला नहीं, चाँद भी उगा नहीं
तीरगी दूर हो तरीका,कोई बचा नहीं
साँझ से जाने क्यूँ,दिल है बुझा बुझा
उदासी का शबब, किसी ने पूछा नहीं
जाने किस बात से यार खफा हो गया
वज़ह जानूँ ऐसी कोशिश किया नहीं
फक्त ज़रा सी बात पे खफा हो गया
मुलाक़ात के लिए मैंने भी कहा नहीं
ऐ दोस्त लाख उदास है मुकेश,लेकिन
ग़ज़ल में मैंने ज़िक्र उसका किया नहीं
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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