जो भी हुआ अच्छा न हुआ
वक़्त कभी हमारा न हुआ
तारीखें बदलीं हैं कलैंडर में
साल, लेकिन नया न हुआ
चलो आज दिन अच्छा गुज़रा
शहर में कोई हादसा न हुआ
अपनी सूरत तेरे दिल में देखूं
हमारे पास आइना न हुआ
अपनी दास्ताँ फिर से सूना दूँ
अभी ये किस्सा पुराना न हुआ
मुकेश इलाहाबादी ----------------
वक़्त कभी हमारा न हुआ
तारीखें बदलीं हैं कलैंडर में
साल, लेकिन नया न हुआ
चलो आज दिन अच्छा गुज़रा
शहर में कोई हादसा न हुआ
अपनी सूरत तेरे दिल में देखूं
हमारे पास आइना न हुआ
अपनी दास्ताँ फिर से सूना दूँ
अभी ये किस्सा पुराना न हुआ
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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