लड़कियाँ ----
ज़्यादातर लडकियां मासूम और पाक दिल की होती हैं। जिनकी ज़िंदगी की चादर की बनावट और बुनावट बहुत झीनी होती है। जो फूल से मुलायम और कपास सी उजली होती है। इस चादर को बहुत ही आहिस्ता व नज़ाक़त से ओढ़ना बिछाना पड़ता है , वरना ज़रा में ही मैली व बेनूर हो जाती है।
अक्सरहाँ , अपनी इस फूल सी चादर को बचाने के लिए खुद को तार तार करती रहती हैं।
अगर लड़कियों को फूल कहा जाए तो गलत न होगा, अक्सरहाँ ये फूलों सा खिलखिलाती और मह्माती रहती हैं , तो ज़रा सी आंच और धुप से मुरझा जाती हैं।
मगर ये बात ज़माना कब समझेगा ?
लडकियां चन्दन होती हैं। पवित्र और न ख़त्म होने वाली खुशबू, शीतलता लिए हुए। जिसके जिस्म पे तमाम शार्प लिपटने को आकुल व्याकुल हैं।
जिन्हे ज़माना काटता है घिसता है और अपने बदबूदार बदन पे मलता है - खुशबू के लिए। मगर ये चन्दन रूपी लडकियां बार बार काटे और घिसे जाने के बावजूद अपनी सुगंध और शीतलता नहीं छोड़तीं।
लडकियां चादर हैं , फूल हैं , चन्दन हैं। अल्द्कीयां आधी आबादी और पूरी आबादी की जननी हैं। फिर भी आज भी इतनी शोषित और उपेक्षित क्यूँ हैं ? क्यूँ हैं ? क्यूँ हैं ?
एक अनुत्तरित प्रश्न।
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
ज़्यादातर लडकियां मासूम और पाक दिल की होती हैं। जिनकी ज़िंदगी की चादर की बनावट और बुनावट बहुत झीनी होती है। जो फूल से मुलायम और कपास सी उजली होती है। इस चादर को बहुत ही आहिस्ता व नज़ाक़त से ओढ़ना बिछाना पड़ता है , वरना ज़रा में ही मैली व बेनूर हो जाती है।
अक्सरहाँ , अपनी इस फूल सी चादर को बचाने के लिए खुद को तार तार करती रहती हैं।
अगर लड़कियों को फूल कहा जाए तो गलत न होगा, अक्सरहाँ ये फूलों सा खिलखिलाती और मह्माती रहती हैं , तो ज़रा सी आंच और धुप से मुरझा जाती हैं।
मगर ये बात ज़माना कब समझेगा ?
लडकियां चन्दन होती हैं। पवित्र और न ख़त्म होने वाली खुशबू, शीतलता लिए हुए। जिसके जिस्म पे तमाम शार्प लिपटने को आकुल व्याकुल हैं।
जिन्हे ज़माना काटता है घिसता है और अपने बदबूदार बदन पे मलता है - खुशबू के लिए। मगर ये चन्दन रूपी लडकियां बार बार काटे और घिसे जाने के बावजूद अपनी सुगंध और शीतलता नहीं छोड़तीं।
लडकियां चादर हैं , फूल हैं , चन्दन हैं। अल्द्कीयां आधी आबादी और पूरी आबादी की जननी हैं। फिर भी आज भी इतनी शोषित और उपेक्षित क्यूँ हैं ? क्यूँ हैं ? क्यूँ हैं ?
एक अनुत्तरित प्रश्न।
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
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