भले ही मकाँ छोटा रक्खो
पै दिल अपना बड़ा रक्खो
इतनी तंगख़याली क्यूँ है?
विचार थोड़ा खुला रक्खो
अँधेरे में भटक जाओगे
चराग इक जला रक्खो
इतनी खुदगर्ज़ी ठीक नहीं
थोड़ी शराफत बचा रक्खो
ख़ुदा औ बुज़ुर्गों के सामने
सर अपना नीचा रक्खो
मुकेश इलाहाबादी --------
पै दिल अपना बड़ा रक्खो
इतनी तंगख़याली क्यूँ है?
विचार थोड़ा खुला रक्खो
अँधेरे में भटक जाओगे
चराग इक जला रक्खो
इतनी खुदगर्ज़ी ठीक नहीं
थोड़ी शराफत बचा रक्खो
ख़ुदा औ बुज़ुर्गों के सामने
सर अपना नीचा रक्खो
मुकेश इलाहाबादी --------
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