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Friday, 9 May 2014

धूप तो खिली है खिलखिलाहट गायब है

धूप तो खिली है खिलखिलाहट गायब है
शाम से ही हवा की सरसराहट गायब है

तितलियाँ शाख पे पँख मोड़ कर बैठी हैं
बाग़ में भँवरों की गुनगुनाहट गायब है ,,

बाज़ार की सड़क पे सरपट दौडने वाले
रेस के घोड़ों की हिनहिनाहट गायब है

साँझ फ़िर दो बम फट गये  बाजार मे
सुबो से शहर की मिनमिनाहट गायब है

खा गये हैं धोखा आशिकी मे मुकेश जी
पीके बैठे हैं चेहरे की मुस्कराहट गायब है

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

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