धूप तो खिली है खिलखिलाहट गायब है
शाम से ही हवा की सरसराहट गायब है
तितलियाँ शाख पे पँख मोड़ कर बैठी हैं
बाग़ में भँवरों की गुनगुनाहट गायब है ,,
बाज़ार की सड़क पे सरपट दौडने वाले
रेस के घोड़ों की हिनहिनाहट गायब है
साँझ फ़िर दो बम फट गये बाजार मे
सुबो से शहर की मिनमिनाहट गायब है
खा गये हैं धोखा आशिकी मे मुकेश जी
पीके बैठे हैं चेहरे की मुस्कराहट गायब है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
शाम से ही हवा की सरसराहट गायब है
तितलियाँ शाख पे पँख मोड़ कर बैठी हैं
बाग़ में भँवरों की गुनगुनाहट गायब है ,,
बाज़ार की सड़क पे सरपट दौडने वाले
रेस के घोड़ों की हिनहिनाहट गायब है
साँझ फ़िर दो बम फट गये बाजार मे
सुबो से शहर की मिनमिनाहट गायब है
खा गये हैं धोखा आशिकी मे मुकेश जी
पीके बैठे हैं चेहरे की मुस्कराहट गायब है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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