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Friday, 27 June 2014

तुम्हारी बोलती सी आखें अच्छी लगी

तुम्हारी बोलती सी आखें अच्छी लगी
ये महकती चहकती बातें अच्छी लगी

यूँ गुमसुम बैठे कर झील के पानी में
पत्थर  फेंकने की अदाएँ अच्छी लगी 

जिस्म से लेकर रूह तक महक जाए
धुप सी सुवासित साँसे अच्छी लगी

जी चाहे है, क़त्ल हो जाऊं तेरे हाथों
तेरी खंज़र सी निगाहें अच्छी लगी

इस बे मुरव्वत ज़माने में मुकेश,
मुहब्बत और वफ़ाएँ अच्छी लगी

मुकेश इलाहबादी ---------------

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