एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Monday, 14 July 2014
सर पे सूरज, ज़मीन पे रेत के मंज़र हैं
सर पे सूरज, ज़मीन पे रेत के मंज़र हैं
हमारे शहर में नीले नहीं सुर्ख समंदर हैं
फ़िज़ाओं में खुशबू और बादल की जगह
सिर्फ और सिर्फ धूल आंधी औ बवंडर हैं
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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