हर शख्श बेक़रार क्यूँ है
रिश्तों में ये दरार क्यूँ है
अब हमें सोचना ही होगा
हर दिल में बाज़ार क्यूँ है
जिसने भी मुहब्बत की है
वो दिल गुनहगार क्यूँ है
पैसों से शुकूं मिलता नहीं
फिर भी तलबगार क्यूँ है
मुकेश तुम बेचैन रहते हो
आखों में ये इंतज़ार क्यूँ है
मुकेश इलाहाबादी -----------
रिश्तों में ये दरार क्यूँ है
अब हमें सोचना ही होगा
हर दिल में बाज़ार क्यूँ है
जिसने भी मुहब्बत की है
वो दिल गुनहगार क्यूँ है
पैसों से शुकूं मिलता नहीं
फिर भी तलबगार क्यूँ है
मुकेश तुम बेचैन रहते हो
आखों में ये इंतज़ार क्यूँ है
मुकेश इलाहाबादी -----------
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