एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Saturday, 30 August 2014
हमारे दर्द की दवा न बन सको
हमारे दर्द की दवा न बन सको तो कोई बात नहीं
कम से कम सूखते ज़ख्मो को तो न कुरेदा होता
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
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