मिटा के सारी इबारत यादों की सलेट के
सो गया हूँ मुँह ढक कर चादर लपेट के
तोड़ डाले सारे जाम मुहब्बत के नाम के
बिन रहा हूँ ,अब टुकड़े दिल की पलेट के
थक गया हूँ चल चल के तेरी तलाश में
ख़ाबों से दिल बहलाऊँ बिस्तर पे लेट के
तुमको न दिखेगा मुकेश अब शहर में
वो जा चुका है साज़ो सामान समेट के
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
सो गया हूँ मुँह ढक कर चादर लपेट के
तोड़ डाले सारे जाम मुहब्बत के नाम के
बिन रहा हूँ ,अब टुकड़े दिल की पलेट के
थक गया हूँ चल चल के तेरी तलाश में
ख़ाबों से दिल बहलाऊँ बिस्तर पे लेट के
तुमको न दिखेगा मुकेश अब शहर में
वो जा चुका है साज़ो सामान समेट के
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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