कई - कई मुखैटे लगा लेता हूं मै
रोज अनकों किरदार निभाता हूं मै
घर में पिता पति भाई व बेटा हूं तो
ऑफिस मे नौकर बना रहता हूं मै
सांझ घर वापस आउं इसके पहले ही
इक झूठी मुस्कान चिपका लेता हूं मै
बेटा मुझसे खिलौना मॉगे इसके पहलेे
उसे नये बहाने से बहला देता हूं मै
पत्नी राशन लाने के लिये कहती है
बडी बेचारगी से उसे निहारता हूं मै
अपने शहर में इक शरीफ इन्सांन हूँ
महफिलों मैं शायर बन जाता हूं मै
आइने में जब अपने को देखता हूं तो
खुद को इक जोकर नजर आता हूं मै
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
रोज अनकों किरदार निभाता हूं मै
घर में पिता पति भाई व बेटा हूं तो
ऑफिस मे नौकर बना रहता हूं मै
सांझ घर वापस आउं इसके पहले ही
इक झूठी मुस्कान चिपका लेता हूं मै
बेटा मुझसे खिलौना मॉगे इसके पहलेे
उसे नये बहाने से बहला देता हूं मै
पत्नी राशन लाने के लिये कहती है
बडी बेचारगी से उसे निहारता हूं मै
अपने शहर में इक शरीफ इन्सांन हूँ
महफिलों मैं शायर बन जाता हूं मै
आइने में जब अपने को देखता हूं तो
खुद को इक जोकर नजर आता हूं मै
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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