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Thursday, 16 April 2015

मुहब्बत भी ज़रूरी है

मुहब्बत भी ज़रूरी है
ज़िंदगी वर्ना अधूरी है
हाले दिल कह तो  दूं
हया मेरी मज़बूरी है
जिस्म है पास - पास
मगर दिलों में दूरी है
चिलमन से झांको तो
शाम कित्ती सिंदूरी है
ज़रा आईना भी देखो 
आरिज़ तेरे अंगूरी हैं
मुकेश इलाहाबादी ---

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