नशे मे नही दर्द से बोझिल है ऑखें
जाने कितने ग़मो से गाफिल हैं ऑखें
यूं देखों तो बडी मासूम सी लगती हैं
ईश्क की साजिश मे शामिल हैं ऑखें
बेवजह दिल को लोग देते हें इल्जाम
हमसे पूछों, कितनी क़ातिल हैं ऑखें
तमाम जज्बातों का दरिया समेटे हुये
आशिक के लिये तो साहिल हैं ऑखें
मुकेश, जहां चुप हों जायें हैं अल्फाज
हर वो बात कहने मे काबिल हैं ऑखें
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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