ओस हूं मै,धूप होते ही बिखर जाता हूँ
फूल सा जिस्म छू दे तो संवर जाता हूं
मै वो दरिया नही कि जो समंदर ढूंढूं
जहां - जहां सहरा है मै उधर जाता हूं
तू मेरे पीछे पीछे आ,और आ कर देख
शाम के बाद मै किधर किधर जाता हूँ
चाँद हूं, फ़लक मेरा आसियाना, रात
तेरी झील सी आखों मे उतर आता हूं
मुकेश, मै बंजारा, चलना मेरी आदत
ये अलग बात तेरे दर पे ठहर जाता हूं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
फूल सा जिस्म छू दे तो संवर जाता हूं
मै वो दरिया नही कि जो समंदर ढूंढूं
जहां - जहां सहरा है मै उधर जाता हूं
तू मेरे पीछे पीछे आ,और आ कर देख
शाम के बाद मै किधर किधर जाता हूँ
चाँद हूं, फ़लक मेरा आसियाना, रात
तेरी झील सी आखों मे उतर आता हूं
मुकेश, मै बंजारा, चलना मेरी आदत
ये अलग बात तेरे दर पे ठहर जाता हूं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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