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Tuesday, 18 August 2015

ज़िंदगी कब पूरी रही ?

ज़िंदगी कब पूरी रही ?
हर सांस अधूरी रही ! 
जब भी तुम साथ रहे  
वोह साँझ सिंदूरी रही 
हमेशा तेरे आरिज़ पे,   
इक लट बिखरी रही 
तेरी काली आखें  थी 
जो रात कजरारी रही 
तू इक दिन मेरी होगी 
यही आस अधूरी रही 

मुकेश इलाहाबादी ---

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