अपने दर्दों ग़म ले कर कहाँ जाऊँ
जहां भी जाऊँ तेरे ही निशाँ पाऊँ
है मेरे जिस्मो जाँ में तेरी खुशबू
बता तेरी ये खुशबू कहाँ छुपाऊँ
ख़्वाब ने तेरी तस्वीर बनाई है
अब सोचता हूँ इसे कहाँ सजाऊँ
अपने उजड़े उजड़े दिले मकाँ में
तुझ नाज़नीं को, किधर बिठाऊँ
आ तू कुछ देर मेरे पहलू में बैठ
तुझे तुझपे लिखी ग़ज़ल सुनाऊँ
मुकेश इलाहाबादी -------
जहां भी जाऊँ तेरे ही निशाँ पाऊँ
है मेरे जिस्मो जाँ में तेरी खुशबू
बता तेरी ये खुशबू कहाँ छुपाऊँ
ख़्वाब ने तेरी तस्वीर बनाई है
अब सोचता हूँ इसे कहाँ सजाऊँ
अपने उजड़े उजड़े दिले मकाँ में
तुझ नाज़नीं को, किधर बिठाऊँ
आ तू कुछ देर मेरे पहलू में बैठ
तुझे तुझपे लिखी ग़ज़ल सुनाऊँ
मुकेश इलाहाबादी -------
No comments:
Post a Comment