जैसे,
ठण्ड से कंपकंपाते बदन को
दे जाए
गुनगुनी सेंक
जेठ के तपती
दुपहरी में
मिल जाए
अमराई की
ठंडी छाँह
या कि
बरसों के सूखे के बाद की
हल्की हल्की फुहार
बस - तुम ऐसी ही हो
मुकेश इलाहाबादी ----
ठण्ड से कंपकंपाते बदन को
दे जाए
गुनगुनी सेंक
जेठ के तपती
दुपहरी में
मिल जाए
अमराई की
ठंडी छाँह
या कि
बरसों के सूखे के बाद की
हल्की हल्की फुहार
बस - तुम ऐसी ही हो
मुकेश इलाहाबादी ----
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