पहलू में न सही नज़र में तो है
मेरी न सही मेरे शहर में तो है
तू खामोश रह, कोई बात नहीं
शुकूं है मेरे संग सफर में तो है
माना समंदर नहीं दरिया नहीं
पर, नाव अपनी नहर में तो है
अनजान राहों में रास्ता भूले ?
बेहतर, तू अपनी डगर में तो हैं
गुमशुदी की ज़िंदगी से अच्छा
तू आज बदनाम खबर में तो है
मुकेश इलाहाबादी -----------
मेरी न सही मेरे शहर में तो है
तू खामोश रह, कोई बात नहीं
शुकूं है मेरे संग सफर में तो है
माना समंदर नहीं दरिया नहीं
पर, नाव अपनी नहर में तो है
अनजान राहों में रास्ता भूले ?
बेहतर, तू अपनी डगर में तो हैं
गुमशुदी की ज़िंदगी से अच्छा
तू आज बदनाम खबर में तो है
मुकेश इलाहाबादी -----------
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