ये जो
खामोश दरिया बहता है
अपने दरम्यां
उसपे
कोई पुल
बने भी तो कैसे
क्यूँ कि
तुम इशारा नहीं समझते
और मै
कहना नहीं जानता
मुकेश इलाहाबादी ----
खामोश दरिया बहता है
अपने दरम्यां
उसपे
कोई पुल
बने भी तो कैसे
क्यूँ कि
तुम इशारा नहीं समझते
और मै
कहना नहीं जानता
मुकेश इलाहाबादी ----
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