सम्बन्धो की
सोंधी और नर्म
ज़मीन पे
गलतफहमी की
नागफनी
उगे और उग कर
उसके,
कोमल तन बदन
को छलनी करे
इसके लिए
वह
खिलखिलाना चाह कर भी
मुस्कुरा के रह जाती है
और मुस्कुराने के वक़्त
सिर झुका के
खामोशी से
गुज़र जाती है
उस खूबसूरत पल से
दूर बहुत दूर
मुकेश इलाहाबादी --
सोंधी और नर्म
ज़मीन पे
गलतफहमी की
नागफनी
उगे और उग कर
उसके,
कोमल तन बदन
को छलनी करे
इसके लिए
वह
खिलखिलाना चाह कर भी
मुस्कुरा के रह जाती है
और मुस्कुराने के वक़्त
सिर झुका के
खामोशी से
गुज़र जाती है
उस खूबसूरत पल से
दूर बहुत दूर
मुकेश इलाहाबादी --
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