मैंने
तुम्हरे प्रति
अपने प्यार को
विस्तार देना शुरू किया
इतना
इतना
इतना कि
जितना बड़ा समंदर
और
हर हराने लगा
अपनी मस्ती में
तुमने भी
खुश हो कर
अनंत विस्तार लिए
अपना,
आसमानी आँचल
मुझपे वार दिया
अब,
तुम मुस्कुरा रही थी
और मै शांत था - अपनी लघुता देख
मुकेश इलाहाबादी ---------------
तुम्हरे प्रति
अपने प्यार को
विस्तार देना शुरू किया
इतना
इतना
इतना कि
जितना बड़ा समंदर
और
हर हराने लगा
अपनी मस्ती में
तुमने भी
खुश हो कर
अनंत विस्तार लिए
अपना,
आसमानी आँचल
मुझपे वार दिया
अब,
तुम मुस्कुरा रही थी
और मै शांत था - अपनी लघुता देख
मुकेश इलाहाबादी ---------------
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