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Monday, 28 March 2016

खामोश सफेदी पसरी थी

सुमी,
जानती हो ?
परवरदिगार ने
जब पहले पहल  दुनिया बनाई थी.
तब वह बेहद सादा सादा थी
कहीं कोइ रौनक न थी,
हर तरफ़ कफ़न सी
खामोश सफेदी पसरी थी
खुदा भी परेशान था
सोच रहा था
इतनी मेहनत से
क़ायनात बनाई
वो भी इतनी उदास और सादी
तुमसे ये उदासी देखी न गयी
और फिर तुमने
लिया

स्याह  रंग - अपने गेसुओं से
मूंगिया - होठों से
दूधिया - अपनी हँसी से
नीला  - आँचल से
गुलाबी  - गोर गोरे गालों से

और
उछाल दिया खुदा की तरफ़
परवरदिगार की तरफ
और,  देखते ही देखते
दुनिया रंग बिरंगी हो गयी

सच -
जब तक तुम हो
तभी तक दुनिया रंगीन है
वर्ना तो सब कुछ है
सादा - सादा
और बेरौनक

मुकेश इलाहाबादी ------



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