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Tuesday, 8 March 2016

सिर के नीचे कुहनी मोड़ कर

सिर के नीचे कुहनी मोड़ कर
रात सो गया उदासी ओढ़ कर
ख्वाब में मेरे मेरा ख़ुदा आया
कुछ  न माँगा  तुझे छोड़ कर
चाहता तो हूँ उड़ के आ जाऊँ
ज़ंजीरें  ज़माने  की तोड़  कर
समान्तर रेखाओं सा दूर पर
हम दोनों जुड़े हैं सिर जोड़ कर


मुकेश इलाहाबादी -----------

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