रातों में जुगनू सा चमकता है
यादों में चन्दन सा महकता है
सुर्ख रंग हैं उसके आरिज़ के
चेहरा गुलमोहर सा दमकता है
लगा लेती है जब लाल बिंदी
माथा उसका खूब चमकता है
वो झटक दे अपनी ज़ुल्फ़ें तो
बादल भी देरतक बरसता है
जिसके हिज़्र में,मुकेश बाबू
दिल मेरा देर तक सुलगता है
मुकेश इलाहाबादी ---------
यादों में चन्दन सा महकता है
सुर्ख रंग हैं उसके आरिज़ के
चेहरा गुलमोहर सा दमकता है
लगा लेती है जब लाल बिंदी
माथा उसका खूब चमकता है
वो झटक दे अपनी ज़ुल्फ़ें तो
बादल भी देरतक बरसता है
जिसके हिज़्र में,मुकेश बाबू
दिल मेरा देर तक सुलगता है
मुकेश इलाहाबादी ---------
No comments:
Post a Comment